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सरसों की सरकारी खरीद 2 अप्रैल से, समर्थन मूल्य ~4000 बाजार भाव 3500-3700

केंद्र सरकार भले ही किसानों की आय दोगुनी करने के दावे करती हो लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि किसानों को कृषि जिंस का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाता है। अब धान मंडी में सरसों की आवक के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव पर बिकने का सिलसिला शुरू हो गया है। वर्तमान में सरसों 3500-3700 रुपए के भाव से बिक रही है जबकि 100 रुपए बोनस के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य 4000 रुपए प्रति क्विंटल है। राज्य सरकार की ओर से सरसों की खरीद दो अप्रैल से शुरू की जाएगी। इसके लिए जिले में दस खरीद केंद्र भी बनाए गए हैं लेकिन सरसों की आवक अभी से शुरू हो चुकी है। गुरुवार को अकेले हनुमानगढ़ मंडी में ही 647 क्विंटल सरसों की आवक हुई। इसके अलावा गोलूवाला, पीलीबंगा, रावतसर व संगरिया सहित सभी मंडियों में आवक जोर पकड़ रही है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने व सरसों की सरकारी एजेंसियों के द्वारा खरीद के लिए तय कड़े नियमों के कारण किसान मंडी में सरसों लाकर समर्थन मूल्य से भी कम भाव पर बोली करवा रहे हैं। उधर, किसान नेताओं की मानें तो प्रदेश में सरसों की खरीद का लक्ष्य भी काफी कम है। किसान नेता ओम जांगू ने बताया कि प्रदेश में आठ लाख मीट्रिक टन सरसों खरीद का लक्ष्य तय किया गया है जबकि पूरे प्रदेश में उत्पादन 45 लाख मीट्रिक टन तक हो सकता है। ऐसे में सभी किसानों की उपज समर्थन मूल्य पर बिकना संभव ही नहीं है। इसलिए सरकार ने किसानों को नियमों में उलझा दिया है ताकि खरीद करनी ही न पड़े। 
जिले में 10 खरीद केंद्र बनाए 
हनुमानगढ़ जिले में सरसों के लिए दस खरीद केंद्र बनाए गए हैं। इनमें हनुमानगढ़ टाउन व जंक्शन के अलावा नोहर, भादरा, रावतसर, निजी मंडी यार्ड रावतसर, संगरिया, टिब्बी, गोलूवाला व पीलीबंगा शामिल हैं। कृषि विपणन अधिकारियों के मुताबिक नैफेड के लिए खरीद करने के लिए क्रय-विक्रय सहकारी समितियों को अधिकृत किया गया है। 
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन व कड़ेनियमों से भी दिक्कत 
सरसों व चने की सरकारी खरीद के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया है। यह पूरा काम ई मित्र केंद्र से होता है। इसके लिए किसान के पास भामाशाह कार्ड भी होना चाहिए। भामाशाह कार्ड न होने की स्थिति में अन्य दस्तावेज ले जाने पड़ते हैं। इसे बाद कृषि जिंस खरीदने की तारीख भी खरीद एजेंसी ही तय करती है और एक बार में 25 क्विंटल से अधिक खरीद नहीं की जाती है। यही वजह है कि किसान कड़ेनियमों के फेर में फंसने की बजाय कम भाव पर सरसों बेच रहे हैं। हालांकि इससे किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। पूरे जिले में नुकसान का आंकड़ा करोड़ों रुपए पर पहुंचता है। 

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