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'ट्रम्प इफेक्ट' का भय : 2100 अरब रुपए का नुकसान


अमेरिका में 'ट्रम्प इफेक्ट' का भय विदेशी छात्रों में ही नहीं, वहां की यूनिवर्सिटी अन्य कॉलेजों में भी साफ दिख रहा है। विदेशियों को रोकने वाले ट्रम्प के नए आदेश पर हवाई राज्य के जज ने फिर रोक जरूर लगा दी है, लेकिन विदेशों से उन छात्रों की संख्या तेजी से घट रही है, जो हर साल अमेरिका आते हैं। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है। इसी वर्ष 2100 अरब रुपए का नुकसान अर्थव्यवस्था को हुआ है। जानिए 'ट्रम्प इफेक्ट' का विश्लेषण- 
वर्ष2015-16में कुल 10.4 लाख विदेशी छात्रों ने अमेरिकी शिक्षण संस्थानों में दाखिला लिया था। उनमें सर्वाधिक 3.28 लाख चीन के और दूसरे नंबर पर 1.65 लाख भारतीय छात्र थे। अब अमेरिका में वातावरण बदल चुका है। कारोबार से ज्यादा शिक्षा और रोजगार में उसका असर दिख रहा है। वर्ष 2016-17 के शिक्षा सत्र में यह संख्या घटी और वर्ष 2017-18 के सत्र में शामिल होने के लिए विदेशी आवेदनों में एकदम गिरावट गई है। 
पोर्टलैंड यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट विम वीवेल ने पिछले सप्ताह हैदराबाद (भारत) में ऐसे छात्रों से मुलाकात की थी, जो अमेरिका में पढ़ने के लिए लगभग तैयारी कर चुके थे। लेकिन, उनका सवाल था कि क्या वे काउंसलिंग से लेकर एडमिशन तक की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी कर सकते हैं। इसका एक ही कारण था, उन छात्रों में भय था। वे अमेरिका के वर्तमान वातावरण से भयभीत थे। उनमें एक छात्र मुस्लिम था, उसने कहा- मेरे पिता बहुत चिंतित हैं, वे चाहते हैं कि मैं अमेरिका में पढ़ूं, लेकिन अमेरिका में मुस्लिम विरोधी वातावरण है। छात्रों से यह सुनकर यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट वीवेल हैरान थे। हालांकि, बात भी सही थी। उन्होंने बताया कि अन्य छात्रों के विचार भी कुछ ऐसे ही थे। वे 'ट्रम्प इफैक्ट' से परेशान थे। 
यूनिवर्सिटी वीवेल कहते हैं- निश्चित रूप से अमेरिका में नेताओं की बयानबाजी और राष्ट्रपति के आदेश का भयावह असर हुआ है। यह सब ट्रम्प प्रशासन के 'ट्रैवल बैन' आदेश के बाद हुआ है। ज्यादातर कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी ऐसे हैं, जहां विदेशी छात्रों के आवेदनों में एकदम से गिरावट आई है। अन्य यूनिवर्सिटी की तरह अॉरेगन यूनिवर्सिटी में भी विदेशी आवेदन बहुत कम आए हैं, जबकि ऐसा पहले नहीं हुआ था। 'अमेरिकी एसोसिएशन ऑफ कॉलेजिएट रजिस्ट्रार्स एंड एडमिशन्स ऑफिसर्स' ने पिछले दिनों एक सर्वे कराया, जिसमें 250 कॉलेजों और यूनिवर्सिटी को शामिल किया गया। उसमें 40 फीसदी ने कहा कि उनके यहां विदेशी छात्रों के आवेदनों में कमी आई है। सबसे ज्यादा गिरावट मिडिल-ईस्ट के देशों के छात्रों की है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका आने वाले भावी छात्रों में ट्रम्प प्रशासन की आप्रवासन नीति को लेकर भय है। 'इंटरनेशनल स्टूडेंट रिक्रूटमेंट प्रोफेशनल्स' ने भी कहा कि उन्हें अमेरिका आकर पढ़ने की इच्छा रखने वाले दुनियाभर के छात्रों में चिंता दिख रही है। हाल ही में हवाई प्रांत के एक जज ने ट्रम्प प्रशासन का ताज़ा 'ट्रैवल बैन ऑर्डर' यह कहते हुए ब्लॉक कर दिया कि उसके असर से देश के 'स्टेट यूनिवर्सिटी सिस्टम' को आर्थिक नुकसान होने की आशंकाएं ज्यादा हैं। उस सिस्टम के तहत छह 'टारगेट' देशों के छात्रों को प्रवेश दिया जाता है और फैकल्टी सदस्यों को हायर किया जाता है। वाशिंगटन राज्य के विशेषज्ञों ने भी ऐसी ही बातें कही हैं। 
काउंसिल ऑफ ग्रेजुएट स्कूल की प्रेसीडेंट सुज़ैन ओर्टेगा कहती हैं- ग्रेजुएट स्कूलों में भय का ज्यादा वातावरण है। विदेशी छात्रों के नहीं आने से वहां करीब आधी सीटें खाली रह गई हैं। हमारे डीन भी बता रहे हैं कि ताज़ा ऑर्डर का भयावह असर हो रहा है। संख्या का पता नहीं, लेकिन स्कूलों और यूनिवर्सिटी में उन प्रोग्राम्स को लेकर चिंता है, जो विदेशी छात्रों के लिए शुरू किए गए थे। उनके कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 2,176 अरब रुपए से ज्यादा राशि मिलती थी। इस वर्ष वह नहीं मिलेगी। 
पिछले एक दशक में अमेरिका आकर पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल यह संख्या पहली बार 10 लाख का आंकड़ा पार कर गई थी। एक तथ्य यह भी है कि किसी भी देश में जब छात्रों का एक देश से दूसरे देश में आवागमन होता है, तो उसका राजनीतिक एवं आर्थिक असर भी होता है। कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस वर्ष विदेशी आवेदनों की संख्या में गिरावट का एकमात्र कारण 'ट्रम्प इफैक्ट' है। 

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