सावधान !! टेलीकॉम कंपनियां आपकी जेब काट रही है
कॉल डिस्कनेक्ट होने पर भी कनेक्ट दिखती है
अपनी खराब सर्विस क्वॉलिटी को छुपाने के लिए टेलीकॉम कंपनियां अब एक नई टेक्नोलॉजी का सहारा ले रही हैं। सूत्रों के मुताबिक इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किसी फोन कॉल के दौरान कनेक्शन टूटने या दूसरी तरफ से आवाज सुनाई देने की स्थिति में भी कॉल कनेक्टेड दिखती है। इससे पहले अगर यूजर खराब नेटवर्क वाले इलाके में जाता था तो कॉल अपने आप कट जाती थी और मौजूदा नियमों के तहत यह ड्रॉप कॉल के रूप में दर्ज होता था। लेकिन नई टेक्नोलॉजी में ग्राहक को कॉल कनेक्टेड दिखाई देती है। और ऐसा तब तक होता है जब तक कि वह खुद इस कॉल को नहीं काट देता। इस तरह से उपभोक्ता से कॉल के पूरे समय का पैसा लिया जाएगा, भले ही वह इस दौरान बात नहीं कर पाया हो। सूत्रों के मुताबिक टेलीकॉम नेटवर्क से जुड़ी जांच में यह बात सामने आई है कि कॉल ड्रॉप पर पर्दा डालने के लिए कंपनियां रेडियो लिंक टेक्नोलॉजी (आरएलटी) का इस्तेमाल कर रही हैं। उद्योगों के संगठन सीओएआई और ऑस्पी से इस मामले में भेजे गए सवालों पर कोई जवाब नहीं मिला है।
रेडियो लिंक टेक्नोलॉजी (आरएलटी) की मदद से कॉल डिस्कनेक्ट होने पर भी कनेक्ट दिखती है जबकि असल में कॉल कट चुकी होती है। यानी कृत्रिम या नकली नेटवर्क पर कॉल कनेक्टेड दिखाती है। आपको दूसरी तरफ से आवाज नहीं आती। ऐसे में आपको या दूसरी ओर से कॉल काट देना पड़ता है। ऐसे में वह कॉल पूरी मानी जाती है और टेलीकॉम कंपनियां कॉल का पूरा पैसा वसूल करती है। इस तरह इस टेक्नोलॉजी की मदद से टेलिकॉम कंपनियों को कमाई तो होती ही है, अपनी ड्रॉप कॉल पर पर्दा डालने में भी मदद मिल जाती है।
www.pilibanga.com
अपनी खराब सर्विस क्वॉलिटी को छुपाने के लिए टेलीकॉम कंपनियां अब एक नई टेक्नोलॉजी का सहारा ले रही हैं। सूत्रों के मुताबिक इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किसी फोन कॉल के दौरान कनेक्शन टूटने या दूसरी तरफ से आवाज सुनाई देने की स्थिति में भी कॉल कनेक्टेड दिखती है। इससे पहले अगर यूजर खराब नेटवर्क वाले इलाके में जाता था तो कॉल अपने आप कट जाती थी और मौजूदा नियमों के तहत यह ड्रॉप कॉल के रूप में दर्ज होता था। लेकिन नई टेक्नोलॉजी में ग्राहक को कॉल कनेक्टेड दिखाई देती है। और ऐसा तब तक होता है जब तक कि वह खुद इस कॉल को नहीं काट देता। इस तरह से उपभोक्ता से कॉल के पूरे समय का पैसा लिया जाएगा, भले ही वह इस दौरान बात नहीं कर पाया हो। सूत्रों के मुताबिक टेलीकॉम नेटवर्क से जुड़ी जांच में यह बात सामने आई है कि कॉल ड्रॉप पर पर्दा डालने के लिए कंपनियां रेडियो लिंक टेक्नोलॉजी (आरएलटी) का इस्तेमाल कर रही हैं। उद्योगों के संगठन सीओएआई और ऑस्पी से इस मामले में भेजे गए सवालों पर कोई जवाब नहीं मिला है।
रेडियो लिंक टेक्नोलॉजी (आरएलटी) की मदद से कॉल डिस्कनेक्ट होने पर भी कनेक्ट दिखती है जबकि असल में कॉल कट चुकी होती है। यानी कृत्रिम या नकली नेटवर्क पर कॉल कनेक्टेड दिखाती है। आपको दूसरी तरफ से आवाज नहीं आती। ऐसे में आपको या दूसरी ओर से कॉल काट देना पड़ता है। ऐसे में वह कॉल पूरी मानी जाती है और टेलीकॉम कंपनियां कॉल का पूरा पैसा वसूल करती है। इस तरह इस टेक्नोलॉजी की मदद से टेलिकॉम कंपनियों को कमाई तो होती ही है, अपनी ड्रॉप कॉल पर पर्दा डालने में भी मदद मिल जाती है।
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