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अब जागने का वक्त गया है !

असाधारण बारिश ने चेन्नई पर अभूतपूर्व कहर ढाया है। सोमवार रात से शुरू हुई मूसलधार बारिश 100 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है, जबकि मौसम विभाग के मुताबिक अभी अगले कई और दिन तक आसमान से मुसीबत का बरसना जारी रह सकता है। राहत एवं बचाव कार्यों में सेना और नौसेना की टुकड़ियां लगाई गई हैं। चेन्नई में जन-जीवन ठप है- इतना कहना शायद वहां आई आपदा का पूरा चित्रण नहीं होगा। चूंकि नवंबर के मध्य में भी भारी बारिश से चेन्नई अस्त-व्यस्त हुआ और उसके असर से महानगर अभी पूरी तरह नहीं उबरा था, इसलिए मौसम की ताजा मार ने पीड़ा को और मारक बना दिया है। स्वाभाविक है कि इन खबरों से देश में दुख और हमदर्दी का माहौल बना है, लेकिन अब जिस तेजी से ऐसी आपदाएं रही हैं, उसके मद्‌देनजर केवल सहानुभूति या राहत-बचाव कार्यों में मदद पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं मानी जा सकती। उल्लेखनीय है कि अपने पिछले 'मन की बात' प्रसारण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में तमिलनाडु में नवंबर में हुई अत्यधिक वर्षा की चर्चा की थी। दरअसल, पर्यावरण विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश-बाढ़ या सूखे की असामान्य एवं चरम स्थितियों का सामना हमें करना पड़ेगा। भारत जैसे अधिक आबादी वाले देश- जहां अनियंत्रित ढंग से शहरीकरण हुआ है- ऐसी परिस्थितियों के दुष्परिणाम भुगतने के लिए अधिक अभिशप्त होते जा रहे हैं। भारत में कस्बों से लेकर महानगरों तक में जल-निकासी की समस्या बेहद गंभीर है। या तो ऐसी व्यवस्था ही वहां नहीं होती अथवा खराब रख-रखाव के कारण थोड़ी असामान्य बारिश होने आने पर वह जवाब दे जाती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम बारिश पर भी जिस तरह जल-भराव की समस्या खड़ी होती रही है, यह इस बात की मिसाल है। अब इन्हीं वजहों से चेन्नई की सड़कों पर कई फीट ऊंचाई तक पानी भरा हुआ है। जलवायु परिवर्तन से बचाव के सिलसिले में खतरा घटाने के कदमों के साथ संभावित स्थितियों के मुताबिक खुद को तैयार रखने के उपायों पर भी जोर दिया जाता रहा है। चरम मौसम को टालना किसी एक देश के बस की बात नहीं है। मगर हर देश संभावित स्थितियों के लिए खुद को तैयार जरूर रख सकता है। नगर नियोजन इस तैयारी का एक अभिन्न अंग है। अब तक हमने इसकी अनदेखी की है, लेकिन अब जागने का वक्त गया है। 

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