कालीबंगा म्यूजियम; राजस्थान के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक, लेकिन आने जाने को पर्याप्त साधन नहीं, सड़कें भी टूटी हुई...खाने-पीने का सामान भी घर से लाएं विश्व संग्रहालय दिवस पर विशेष
हनुमानगढ़ जिले के गांव कालीबंगा (पीलीबंगा रेलवे स्टेशन से 4 km दुरी) में स्थित संग्रहालय में पुरातत्व विभाग द्वारा विश्व संग्रहालय दिवस मनाया गया। लेकिन अफसोसजनक तथ्य है कि विश्व मानचित्र पर अंकित यह पुरातत्व स्थल पर्यटन विभाग की अनदेखी का दंश झेल रहा है। क्षेत्र के एकमात्र उम्दा इस संग्रहालय को जाने के लिए बनी एकमात्र सड़क की हालत ऐसी है कि पर्यटक वहां अपने निजी साधनों से भी जाना ठीक नहीं समझते। इसके अलावा संग्रहालय के पास पर्यटकों के विश्राम व खाने पीने के लिए भी कोई होटल या रेस्टोरेंट नहीं है, जिससे प्रदेश व दूरदराज से आए पर्यटकों तथा हजारों वर्ष पुराने इस इतिहास को आंखों से देखने के लिए आने वाले विद्यािर्थयों को भी निराशा हाथ लगती है। कालीबंगा संग्रहालय को जाने के लिए पीलीबंगा से रावतसर रोड़ पर कालीबंगा कैंची हाेते हुए तथा हनुमानगढ़ टाउन से वाया करणीसर सहजीपुरा मार्ग तक जाने वाली सड़क की हालत बहुत ज्यादा खस्ता है। ऐसे में श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ के इस इकलौते संग्रहालय को देखने प्रतिदिन महज 15-20 पर्यटक ही आ पाते हैं।
सरकारें भी उदासीन...हर सरकार के समय प्रस्ताव गए, साधनों की व्यवस्था हो, रेस्टोरेंट खुला, लेकिन हुआ कुछ नहीं
प्रत्येक चुनाव में विभिन्न पार्टी प्रत्याशियों द्वारा कालीबंगा को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने का भरोसा क्षेत्रवासियों को दिलाया जाता है जबकि सरकारें बनने के बाद आज तक किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। क्षेत्र के इतिहासकाराें व शिक्षाविदों के अनुसार इस प्राचीन धरोहर व सभ्यता के साथ साथ कालीबंगा संग्रहालय के बारे में भी राज्य के शिक्षा विभाग को प्रारंभिक शिक्षा में शामिल करना चाहिए ताकि बच्चों व युवा पीढ़ी में संग्रहालय के प्रति रूचि पैदा हो सके। इसके अलावा संग्रहालय को जोड़ने वाली सड़कों की मरम्मत तो पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा पर्यटन विभाग को हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय को केंद्र बनाते हुए संग्रहालय तक पहुंचने के लिए पर्यटकों के लिए एक न्यूनतम किराए में वाहन की व्यवस्था तथा संग्रहालय के पास एक रेस्टाेरेंट प्रारंभ किया जाए तो संग्रहालय में पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सकता है। इसके साथ ही रेलवे विभाग द्वारा रावतसर रेलवे फाटक पर ओवरब्रिज बनाया जाना भी पर्यटकों की संख्या में इजाफा करने में कारगर सिद्ध होगा। क्योंकि इस फाटक के हर वक्त बंद रहने से भी इस तरफ मुड़ने वाले पर्यटकों को घंटों इंतजार के बाद बिना संग्रहालय देखे ही लौटना पड़ता है। कालीबंगा संग्रहालय पर शनिवार को विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर पुरातत्व विभाग द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया। सहायक अधीक्षक पुरातत्वविद् अनिल कुमार डागर के अनुसार कार्यक्रम में विभिन्न स्कूली बच्चों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी |
1995 में शुरू हुआ था संग्रहालय, मई 2017 में पुनर्निर्माण के साथ फिर खोला गया, अब रोज आते हैं 15 से 20 पर्यटक
शुक्रवार छोड़ पूरे सप्ताह खुला रहता है संग्रहालय, शुल्क 5 रु. :संग्रहालय शुक्रवार को छोडक़र पूरे सप्ताह पर्यटकों के लिए खुला रहता है। संग्रहालय में पर्यटकों की जानकारी के लिए गैलरियों में जगह-जगह पुरावशेषों के बारे में जानकारी लिखकर बोर्ड भी लगाए हुए हैं। संग्रहालय में भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क 5 रुपए व विदेशी पर्यटकों के लिए 100 रुपए टिकट शुल्क है। जबकि 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का प्रवेश निशुल्क है।
हड़प्पाकालीन सभ्यता के समय का रहन-सहन व जीवन देखना है तो एक बार जरूर आएं इतिहास
हड़प्पाकालीन कालीबंगा 2700 ई.पू. में आए भूकंप में नष्ट हो गई थी | साक्ष्यों के आधार पर विकसित हड़प्पाकालीन कालीबंगा की नगर योजना की जानकारी मिलती है जो संभवतय 2700 ई.पू. आए भूकंप से नष्ट हो गई। यह पुरास्थल लगभग 100 वर्ष पश्चात् 2600 से 190 ई.पू. के मध्य विकसित हड़प्पाकालीन लोगों द्वारा आबाद रहा। जिसकी बसावट प्रारंभिककालीन बस्ती से बिल्कुल अलग थी। कालीबंगा की नगर योजना भी अन्य सिंधु घाटी के नगरों की तरह पश्चिम में बने दुर्ग तथा पूर्व में बसे निचले नगर के रूप में विभाजित थी। इतिहासकारों के अनुसार यह नगर योजना 700 वर्षों तक ऐसे ही सुनियोजित आकार में रही।
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