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नाहरांवाली के तीन युवा, कोई वकील तो कोई अध्यापक, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए चला रहे मुहिम ताकि हवा, पानी, भोजन और जीवन बचाया जा सके


खेती को परांपगत तरीके से करने की पक्षधर है इनकी समिति, भारत के अलावा श्रीलंका, नेपाल व बांग्लादेश में भी कर चुके सेमिनार 
एक तरफ जहां लाेग अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं वहीं दूरस्थ नाहरांवाली गांव के तीन लोग प्रकृति को बचाने की मुहीम छेड़े हुए हैं। हालांकि इस टीम में जिलेभर से अनेक लोग काम कर रहे हैं। ये लाेग अपना हर काम छोड़कर प्रकृति को बचाने की अलख जगा रहे हैं। प्रकृति-मानव केन्द्रित जन आंदोलन की अलख जगाने के लिए ये लोग देश-विदेश में जाकर लोगों को बिना किसी स्वार्थ भावना के प्रकृति को बचाने वाली खेती की तकनीक के बारे में बताते हैं। इनका मानना है कि इस धरती और संपूर्ण जीव जगत और मानवता को बचाने के लिए खेती का प्रकृति केंद्रित करना ही होगा। जोराराम सहारण,एडवोकेट लालचंद कूकणा अौर अध्यापक राजाराम ज्याणी इसी मकसद से भारत,नेपाल,श्रीलंका तथा देश के विभिन्न राज्यों में बैठकें कर लोगों को धरती पर होने वाली सामूहिक तबाही के बारे में बताकर सचेत कर रहे हैं ताकि मानव सहित जीव जगत को इस प्रलय से बचाया जा सके। एडवोकेट लालचंद कूकणा ने बताया कि अर्थ प्रधान युग की शुरूआत होने के कारण अब मानवता खत्म होती जा रही है। इससे धरती पर हो रही ग्लोबल वार्मिंग को रोकना होगा। राजाराम ज्याणी शिक्षण कार्य करते हुए लोगों को इस चुनौती के बारे में जागृत कर रहे हैं उनका कहना है की वैज्ञानिकों के मतानुसार आज धरती पर 52 प्रतिशत जीव जंतु तथा धरती के उपजाऊ तत्व समाप्त हो चुके हैं। इससे धरती पर आधी प्रलय तो हो चुकी है साथ ही भोजन,हवा और पानी प्रदूषित हो चुके हैं। इससे संपूर्ण मानव जाति तथा जीव जगत पर अपने अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। 
खेती में रसायनों का प्रयोग, बढ़ता वायु व जल प्रदूषण ही सबसे बड़ा खतरा, इसलिए प्राकृतिक खेती करने को करते हैं प्रेरित, इसीलिए देशभर में चला रहे अिभयान 
खुद प्राकृतिक खेती कर रहे जोराराम सहारण बताते हैं कि 1970 से 80 के दशक में देश में हरित क्रांति के आगाज के समय उठे इस खतरे को लोगों के सामने सही तरीके से रखा ही नहीं गया। नतीजा यह हुआ कि किसानों ने खेती में उत्पादन बढ़ाने को अधिक से अधिक रसायनों, खाद आैर शंकर बीजों का सहारा लेना शुरू किया। इधर इसके उपयोग से जमीन का उपजाऊपन धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है और जमीनें भी आदमी की तरह बीमार पड़ती जा रही हैं। जमीन का उपजाऊपन वापस बनाने के लिए रसायन युक्त खेती का उपयोग पूरी तरह बंद करना होगा। इसी के साथ वायु और जल को दूषित करने से हर व्यक्ति को सचेत होना होगा। तभी मानव बचेगा और जीव जंतु ही बचेंगे। ऐसा नहीं किया गया तो बीमारियां इतनी बढ़ जाएंगी कि इलाज ही संभव नहीं होगा।

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