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प्रकाशोत्सव - गुरुनानक देव की एक सीख से पड़ी गुुरुद्वारों में लंगर की प्रथा


श्रीगुरुनानक देव के पिता महता कालू जी ने एक बार उन्हें कुछ धनराशि दी और कोई सच्चा सौदा करने के लिए बाजार में भेजा। गुरु जब बाजार की तरफ गए तो रास्ते में उन्हें कुछ साधु मिले, जो भूखे थे। साधुओं संतों को देखा, उन्होंने अपने पिता से मिली राशि से भोजन खरीदा और भूखे संतों को भोजन कराया। इसके बदले में संतों ने उन्हें आशीर्वाद दिया। घर वापस आने पर जब गुरु के पिता ने उनसे सच्चे सौदे की बात पूछी तो उन्होंने सारी घटना बताई। इससे उनके पिता बहुत खुश हुए और उनके इस सेवा कार्य को जारी रखने की बात कही। सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने भी इस कार्य को बढाने का काम किया, उनका कहना था कि - पहले पंगत फिर संगत। यानी पहले भूखे गरीब लोगों को भोजन कराओ उसके बाद श्रद्धालुओं को भोजन कराया जए। गुरुओं की इसी वाणी पर अमल करते हुए हर गुरुद्वारे में अटूट लंगर बरताया जाता है। 

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