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रोपाई की बजाय बुआई से चावल उत्पादन का कामयाब हो रहा है फील्ड ट्रायल, सिंचित क्षेत्र में चावल उत्पादन की उम्मीद बढ़ी

हनुमानगढ़ जिला | चावल कीफसल के बारे में सोचते ही पानी से भरे खेत में धान के पौधे रोपते मजदूरों की तस्वीर ही आंखों के सामने आती है पर जल्द ही यह तस्वीर बदल भी सकती है। इस साल खरीफ के सीजन में आत्मा परियोजना के तहत बिना धान की पनीरी रोपे, काम पानी का उपयोग कर सीधे बीजों से चावल की फसल लेने का प्रयोग किया गया है। ग्राम पंचायत कुलचंद्र के चक 10 पीडीआर के काश्तकार बंसी लाल के खेत में करीब डेढ़ एकड़ भूमि पर इसी विधि से लगाई गई धान की फसल लहलहा रही है। पारंपरिक तरीके की तुलना में अधिक उपज मिलने की उम्मीद है। बंसी लाल के मुताबिक प्रति बीघा करीब 18 क्विंटल धान होने की उम्मीद है। हालांकि पहली बार ट्रायल पर लगाई गई इस फसल का मौसम ने पूरी तरह साथ नहीं दिया लेकिन फिर भी प्रयोग सफल होता दिख रहा है। 
पारंपरिक खेती से इस तरह है अलग 
धानकी परंपरागत खेती में पानी से भरे खेत में धान के पौधे रोपे जाते हैं। अधिकांश समय खेत में पानी भरा रहता है। नई तकनीक में सीड ड्रिल के माध्यम से बिजाई की जाती है। सिंचाई के लिए भी गेहूं अन्य फसलों की तरह फ्लड इरिगेशन तकनीक का उपयोग होता है। आत्मा परियोजना के उप परियोजना अधिकारी बीआर बाकोलिया ने काश्तकार को प्रेरित किया। बाकोलिया ने बताया कि इस तकनीक से धान की फसल लेने के लिए पूसा बासमती 1509 किस्म के उपयोग की सलाह देते है। 

    •  धान की रोपाई के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की जरूरत होती है। नई तकनीक से मजदूरों की जरूरत के बराबर होगी और काश्तकारों का खर्च बचेगा। 
    •  परंपरागत पद्धति के मुकाबले आधे से भी कम पानी की जरूरत होती है। खेत में पानी खड़ा नहीं रखना पड़ता और फ्लड इरिगेशन तकनीक का उपयोग होता है। 
    •  खेत में पानी खड़ा रखने के कारण जमीन दलदली नहीं होती। इससे उर्वरा शक्ति बनी रहती है। 
    •  पानी सोखने के लिए पौधा जमीन में नीचे की ओर भी बढ़ता है। इससे पौधे का विकास बेहतर होता है, अधिक उत्पादन की उम्मीद। 
    •  नर्सरी में पौधे तैयार करने की जरूरत नहीं। ऐसे में फसल के समय में भी कमी होती है। अधिकारियों के मुताबिक फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

"धान बुआई का फील्ड ट्रायल किया गया है जो काफी कामयाब रहा। यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहता है तो नहरी क्षेत्र में यह फसल ग्वार और कपास का अच्छा विकल्प बन सकती है। "
दानारामगोदारा, परियोजनानिदेशक, आत्मा परियोजना 

"धान के ट्रायल फील्ड का निरीक्षण किया था। संबंधित किसान को अच्छे उत्पादन की उम्मीद है और फसल भी अच्छी खड़ी है। यह तकनीक सफल होती है तो चावल की खेती के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकती है। "
डॉ.उदयभान, उपनिदेशक,कृषि (विस्तार) 

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