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प्रचार सामग्री के बिजनेस पर आचार संहिता का डंडा

श्रीगंगानगर | वो दौर खत्म हुआ जब चुनाव होते थे तो सियासी पार्टियां पूरे शहर को झंडों, होर्डिंगों से पाट देती थी। प्रचार सामग्री बेचने वाले भी इससे खूब मुनाफा कमाते थे, लेकिन निर्वाचन आयोग की सख्ती के चलते इस बार चुनावी समर में ऐसा नहीं है। नामांकन शुरू हो चुके हैं। बावजूद इसके चुनाव प्रचार सामग्री बेचने वालों, प्रिंटिंग प्रेस और फ्लैक्स बनाने वाले खाली बैठे हैं। व्यापारियों की मानें तो दीवाली में उनका व्यापार अच्छा होता था, लेकिन ज्यादा मुनाफे के चक्कर में उन्होंने चुनाव को प्राथमिकता दी। चुनाव सामग्री बेचने के लिए शहर भर में प्रचार किया, लेकिन उम्मीदवार और राजनीतिक पार्टियां प्रचार सामग्री खरीदने से बच रही हैं। इससे व्यवसाय पूरा ठंडा पड़ा है। शहर के नामी प्रिंटर्स वाले बताते हैं कि पिछले चुनावों में नामांकन के दौरान ही अच्छा खासा व्यापार होता था। शहर में प्रचार सामग्री के व्यापार से 500 से ज्यादा लोग सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं। काम नहीं होने के कारण वे खाली पड़े हैं। उधर, शहर में चुनाव आयोग के मतदान जागरूकता के फ्लैक्स के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा। 

पिछली बार से 10 फीसदी भी नहीं हुई बिक्री 
चुनाव प्रचार सामग्री का कारोबार करने वाले व्यापारियों की मानें तो इस बार बाजार पूरी तरह से ठंडा है। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लाखों की बिक्री हुई थी। उनके यहां हनुमानगढ़ समेत आसपास क्षेत्रों से लोग आते थे। वहीं इस बार उस बिक्री का 10 फीसदी माल भी नहीं बिका। 

चुनाव प्रचार वाली होर्डिंग लगाने पर भी मनाही :
कई एजेंसियों के पास नगरपरिषद से प्राइम लोकेशन पर विज्ञापन लगाने का ठेका है। जिस पर विज्ञापन एजेंसी वाले अपने हिसाब से विज्ञापन लगाते हैं। लेकिन आचार संहिता का डंडा यहां पर भी चला है। नगरपरिषद ने विज्ञापन की ऐसी जगहों पर चुनाव प्रचार वाले होर्डिंग लगाने की भी मनाही कर रखी है। 

देनी होती है जानकारी 

प्रचार सामग्री खरीदारी से पहले उम्मीदवार और व्यापारी दोनों को ही फॉर्म क और ख भर कर निर्वाचन आयोग को जानकारी देनी होती है। फॉर्म में क्या खरीदा जा रहा है, उसकी संख्या क्या है, किस कीमत पर खरीदा जा रहा है। सभी कुछ भरना पड़ता है। 
निर्वाचन आयोग की घोषित कीमत से कम हैं कई चीजों की कीमत 

निर्वाचन आयोग ने इस बार हर प्रकार की प्रचार सामग्री की कीमत भी घोषित कर रखी है, लेकिन बाजार में उससे अत्यधिक कम कीमत पर चीजें उपलब्ध हैं। जैसे निर्वाचन आयोग ने एक टोपी की कीमत 20 रुपए रखी है, वहीं बाजार में राजनीतिक पार्टियों का नाम लिखीं टोपियां 5 से 10 रुपए में बिक रही हैं। 

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