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नहीं जानता, क्रिकेट के बिना कैसे जिऊंगा : सचिन

हमेशा कहा जाता है -सच कड़वा होता है। सचिन के संन्यास की घोषणा का सच आज उनके प्रशंसकों को वाकई बहुत कड़वा लग रहा है। 11 की उम्र से सचिन ने खेलना शुरू किया। 16 की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए और आज चालीस के हैं। दुनिया, खासकर हिंदुस्तान की तीन पीढिय़ों को सचिन के बगैर क्रिकेट देखना नहीं आता। दरअसल, 16 से 70 साल तक के हिंदुस्तानी क्रिकेट को ही सचिन या सचिन को ही क्रिकेट मानते हैं। 
हालांकि आज से पहले कई क्रिकेट पे्रमी यही कह रहे थे कि सचिन संन्यास क्यों नहीं ले रहे? दूसरे, नए खिलाडिय़ों को मौका क्यों नहीं देते? लेकिन घोषणा होते ही ऐसी तमाम चर्चाओं पर सन्नाटा छा गया है। गुरुवार को सचिन ने टेस्ट क्रिकेट से भी संन्यास का ऐलान कर दिया। वे नवंबर में वेस्टइंडीज के खिलाफ आखिरी मैच खेलेंगे। ये उनका 200वां टेस्ट होगा। वनडे, टी-20 पहले ही छोड़ चुके हैं। उनकी इस घोषणा से सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया है कि लोग अब क्रिकेट देखते वक्त बात क्या करेंगे? अब वक होता यह था कि चौका-छक्का लगे तो सचिन की जय-जयकार। कैच उछले तो सचिन को ऐसा नहीं, वैसा खेलना था। यही नहीं, दूसरा खिलाड़ी अच्छा खेले तो कहा जाता था- सचिन बनेगा। या कहते थे- सचिन बनने की कोशिश में आउट मत हो जाना। पड़ोसी के बच्चे को गली में क्रिकेट खेलते देख व्यंग्य कसते थे - बड़ा, सचिन बनने चला है। सचिन, हर तरफ थे और रहेंगे भी। मैदान भले ही छोड़ रहे हों, लेकिन घर-आंगन में वे जैसे बसे हैं। 
सचिन, सचिन है। दूसरे खिलाड़ी मैच जीतते हैं, सचिन ने हमेशा दिल जीता। दूसरे देशों की टीमें खुश हो सकती हैं, क्योंकि वे कितने ही रन बना लें, जब तक सचिन मैदान पर होते थे, डर बना रहता था। सचिन के आउट होते ही विरोधी टीम ऐसे उछलती थी, जैसे मैच ही जीत लिया हो। नए क्रिकेटरों को भले ही हम अनायास सचिन कह देते हैं, पर सच कहें तो सचिन जैसा कोई नहीं। 

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