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कालीबंगा की समकालीन सभ्यता के संकेत

प्राचीन सभ्यता की खोज के लिए पुरातन थेहड़ (वर्तमान में कृषि भूमि) पर गांव कमाना (डबलीवास चुगता) के वाटर वर्क्स के समीप चक 17 एसटीजी में खुदाई चल रही है। यहां कालीबंगा की समकालीन सभ्यता के संकेत मिलने की संभावना है। अब तक चार फीट खुदाई हो चुकी है। जिसमें मृद भाण्ड (बर्तन) के टुकडे व अन्य वस्तुएं मिली हैं।
इस स्थान के चयन के लिए पूर्व में सर्वे हुआ था। इंगलैण्ड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय एवं बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त दल की ओर से किए जा रहे शोध में पांच व्यक्ति लगे हैं। यह कार्य 21 अप्रेल तक चलेगा। इसमें कुछ अन्य लोग भी जुडेंगे। विशेष औजारों से की जा रही खुदाई में विशेषज्ञ स्वयं जुटे हैं।
स्थानीय महानरेगा श्रमिक भी सहयोग कर रहे हैं। कार्यक्रम के डायरेक्टर डॉ. आरएन सिंह 3 अप्रेल को खुदाई स्थल पर पहुंचेगे। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के डॉ. चार्ली शुक्रवार को दल में शामिल होंगे। दल के प्रमुख सहयोगी अरूण कुमार पाण्डेय तीन वर्षो से इस कार्य में जुड़े हुए हैं तथा वर्ष 1984 में प्राचीन सभ्यता की खोज में जुटे दलों के साथ कार्य कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में डॉ. कामरान पैट्री, रैड हैप्पस डेविड, जेनिकट बेट व दानिका फाटिक की टीम कार्य में जुटी हुई है।

कमाना गांव के वृद्ध हसन खां (80) के अनुसार यहां थेहड़ हैं। आजादी से पूर्व इसका अस्तित्व था। बताया जाता है कि यहां गांव हुआ करता था, जो दफन हो गया। बाद में यह स्थान कृषि भूमि में बदल गया। किसी जमाने में खाली स्थानों पर घग्घर नदी का पानी (निचले स्थानों) भर जाता था। ग्रामीण चाननराम ने बताया कि उनकी कृषि भूमि खुदाई स्थल के साथ चिपती है। पूर्वजों के अनुसार यहां ऊंची जगह होने के कारण सिंचाई सुचारू नहीं होती थी। जिसे मिट्टी खुदाई कर समतल कर दिया गया। खुदाई में पुरातन मटके आदि मिले थे, जिन्हें बेकार की वस्तु समझकर फैंक देते थे।

हनुमानगढ़ जिले में पुरातन थेहड़ों पर विशेष नजर है। महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक का छात्र विकास पंवार इस विषय पर शोध कर रहा है। वह अब तक 380 थेहड़ों की खुदाई कर चुका है। डबलीराठान सहजीपुरा मार्ग पर थेहड़ भी शोध का स्थान है।

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