एक ट्रेन रोको, 10 बस-20 ट्रक-40 कार रुक ही जाएगी
रेल की पटरियों पर अगर आंदोलन बोया जाए तो आरक्षण की फसल लहलहाने लगती है। बड़ी उपजाऊ होती हैं रेल की पटरियां। अब मुझे समझ में आ रहा है कि लोग अपने आसपास रेल की मांग क्यों करते हैं। अगर आंदोलन के लिए मन हो रहा है तो आप रेल ही तो रोकेंगे न! और अगर आपके आसपास दो-चार सौ किलोमीटर तक कोई रेल पटरी ही नहीं हो तो आप धरना कहां देंगे, खासतौर पर जब आप जातिगत आरक्षण का आंदोलन चलाना चाहते हों? हर आंदोलन की अपनी स्टाइल होती है। आरक्षण अगर चाहिए तो रेल की पटरियों पर चलकर ही आप तक पहुंचेगा। पटरी पर आपने अपने उपस्थ धर दिए तो समझ लीजिए मांगें मंजूर होने में देर नहीं है।
अगर आप बढ़ रही महंगाई के खिलाफ आंदोलन करना चाहते हैं तो रेल की पटरी पर बैठने का आपको हक नहीं है। हां, बगैर टिकट इन पटरियों पर चल रही रेलों में सवार होकर दिल्ली जरूर पहुंच सकते हैं। वहां जुलूस निकाल सकते हैं या संसद घेर सकते हैं। पर इसके लिए विपक्षी दल का होना जरूरी होता है, वरना कोई पूछेगा भी नहीं। रेल की पटरियों से आरक्षण तेजी से आता है। इसीलिए आपने देखा ही होगा कि रेल-बजट में कितना शोर होता है कि हमारे इलाके में रेल चाहिए। आना-जाना भी कोई रेल से करता है भला। गांववाले वैसे भी बाहर कम निकलते हैं। तो रेल की उपयोगिता इसी बात से तय होती है कि सालभर में कितनी बार रोकी गई। रेल का समय से आना-जाना कोई खास बात थोड़े ही है।
एक ट्रेन रोक लें तो दस बसें, बीस ट्रक, चालीस कारें तो आसानी से रुक जाती हैं। तो फिर इतनी जहमत सड़क पर क्यों उठाई जाए। फिर एक ट्रेन का रुकना यानी कई-कई ट्रेनों का इधर-उधर हो जाना है। सड़क पर खतरा यह भी है कि ट्रक, बस या कार वाले भी कहीं सड़क पर न उतर आएं। इस लिहाज से देखें, तो लगता है कि जब पटरी तक पहुंचना ही है, तो वहीं से शुरुआत क्यों न की जाए। फिर पटरी-आंदोलन का बड़ा फायदा यह भी होता है कि सरकार डंडे नहीं फटकारती और आपके खिलाफ केस भी नहीं करती। जब कोई आंदोलन इतना निरापद हो तो कोई क्यों पटरी छोड़कर कहीं और जाएगा।
आर्टिकल : Source: DailyBhasker.com
अगर आप बढ़ रही महंगाई के खिलाफ आंदोलन करना चाहते हैं तो रेल की पटरी पर बैठने का आपको हक नहीं है। हां, बगैर टिकट इन पटरियों पर चल रही रेलों में सवार होकर दिल्ली जरूर पहुंच सकते हैं। वहां जुलूस निकाल सकते हैं या संसद घेर सकते हैं। पर इसके लिए विपक्षी दल का होना जरूरी होता है, वरना कोई पूछेगा भी नहीं। रेल की पटरियों से आरक्षण तेजी से आता है। इसीलिए आपने देखा ही होगा कि रेल-बजट में कितना शोर होता है कि हमारे इलाके में रेल चाहिए। आना-जाना भी कोई रेल से करता है भला। गांववाले वैसे भी बाहर कम निकलते हैं। तो रेल की उपयोगिता इसी बात से तय होती है कि सालभर में कितनी बार रोकी गई। रेल का समय से आना-जाना कोई खास बात थोड़े ही है।
एक ट्रेन रोक लें तो दस बसें, बीस ट्रक, चालीस कारें तो आसानी से रुक जाती हैं। तो फिर इतनी जहमत सड़क पर क्यों उठाई जाए। फिर एक ट्रेन का रुकना यानी कई-कई ट्रेनों का इधर-उधर हो जाना है। सड़क पर खतरा यह भी है कि ट्रक, बस या कार वाले भी कहीं सड़क पर न उतर आएं। इस लिहाज से देखें, तो लगता है कि जब पटरी तक पहुंचना ही है, तो वहीं से शुरुआत क्यों न की जाए। फिर पटरी-आंदोलन का बड़ा फायदा यह भी होता है कि सरकार डंडे नहीं फटकारती और आपके खिलाफ केस भी नहीं करती। जब कोई आंदोलन इतना निरापद हो तो कोई क्यों पटरी छोड़कर कहीं और जाएगा।
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