Header Ads

test

क्या कोरोना के बाद भारत होगा दुनिया की पहली पसंद?

कोरोना की शुरुआत चीन से हुई और फिर ये धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया. इस महामारी के चलते आर्थिक गतिविधियां भी थम गई हैं. लेकिन इस संकट ने तमाम देशों को अंतरराष्ट्रीय कारोबार को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है |
इस महामारी की वजह से अमेरिका त्रस्त है और उसकी चीन से तल्खी बढ़ती जा रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को व्यापार संधि तोड़ने की धमकी दे डाली है. अमेरिका और चीन के बीच तनातनी से दुनिया में दो ताकतें खेमेबाजी में तब्दील होने लगी हैं |
कोरोना वायरस ने चीन को कारोबार के मोर्चे पर बड़ा झटका दिया है. अब इसके झटके में भारत के लिए बड़ा मौका छिपा है. अगर भारत इस मौके को भुनाता है तो आने वाले वर्षों में चीन की आर्थिक ताकत कमजोर होगी, और उसके एकछत्र कारोबार पर अंकुश लगेगा |
दरअसल कोरोना संकट के बीच फेसबुक ने रिलायंस जियो में 43,574 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इस डील को बड़े अर्थशास्त्री शुरुआत मान रहे है. अमेरिका भारत रणनीतिक और साझेदारी मंच (USISPF) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने पीटीआई को बताया कि कोविड-19 संकट के चलते भारत को विदेशी निवेश जुटाने और दुनिया के विनिर्माण केंद्र के रूप में चीन की जगह लेने का एक बढ़िया मौका मिला है |
FB से शुरुआत, क्या कोरोना के बाद भारत होगा दुनिया की पहली पसंद?
उन्होंने कहा कि फेसबुक-जियो डील दर्शाता है कि विदेशी कंपनियों को भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षमता और भविष्य में इसके विकास पर पूरा भरोसा है, और जब कोविड-19 संकट खत्म हो जाएगा, तब भारत के पास सैकड़ों विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने का सबसे अच्छा मौका होगा. उन्होंने कहा कि इससे न सिर्फ रोजगार मिलेंगे, बल्कि निवेश भी आएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था की गति तेज होगी |
वहीं नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि भारत को कोरोना संकट का फायदा उठाते हुए चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियों को अपने यहां आकर्षित करना चाहिए. उन्हें भरोसे में लेना चाहिए |
इसके अलावा बिजनेस टुडे में छपी एक खबर के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण चीन में विदेशी कंपनियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लगभग 1000 विदेशी कंपनियां भारत में एंट्री की सोच रही हैं. इनमें से करीब 300 कंपनियां भारत में फैक्ट्री लगाने को लेकर पूरी तरह से मूड बना चुकी हैं. इस संबंध में सरकार के अधिकारियों से बातचीत भी चल रही है. 300 कंपनियां में अधिकतर मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स के क्षेत्र में सक्रिय हैं |
चीन कोरोना के कहर से पस्त दुनिया की इकोनॉमी का फायदा उठाते हुए कई देशों की कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने में लग गया है. लेकिन कई देशों ने चीन को झटका देना शुरू कर दिया है. भारत भी चीन की चाल को समझ गया और FDI के नियमों में बदलाव कर दिया है. जिससे चीन चिढ़ गया है |

यूरोपीय संघ ने भी बदला नियम

भारत से पहले यूरोपीय संघ ने अपने एफडीआई नियमों में बदलाव कर दिया. यूरोपीय संघ के कई सदस्य देश चीन के 'बारगेन हंटिंग' को रोकने के लिए विदेशी निवेश पर अंकुश वाले नियम लाए. जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन सहित कई देशों ने इसे अपनाया. इस सभी देशों को डर था कि उसकी खस्ताहाल कंपनियों को सस्ती कीमत पर विदेशी कंपनियां खरीद सकती हैं |
इसके अलावा कोरोना प्रभावित देश ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने भी FDI के नियमों को सख्त कर दिया है. इसी तरह, ब्रिटेन में सैन्य, कंप्यूटर हार्डवेयर, क्वांटम टेक्नोलॉजी में अधिग्रहण बिना सरकारी मंजूरी के अब नहीं हो सकती |

क्यों भारत पसंद?

केंद्र की मोदी सरकार लगातार विदेशी निवेशकों में लुभाने में जुटी है. इसके लिए सरकार ने कई बड़े ऐलान भी किए हैं. बीते साल कॉर्पोरेट टैक्स को घटाकर 25.17 फीसदी कर दिया था. वहीं नई फैक्ट्रियां लगाने वालों के लिए ये टैक्स घटकर 17 फीसदी पर ला दिया गया है. यह टैक्स दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे कम है |
ऐसे में अगर सरकार की ओर से पॉजिटिव रिस्पॉन्स रहा तो यह चीन के लिए बड़ा झटका होगा. इसके साथ ही चीन के हाथों से मैन्युफैक्चरिंग हब का तमगा छिन जाने का खतरा मंडराने लगेगा.

No comments