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सरकारी सिस्टम का जानलेवा सच

2 साल की बच्ची तीसरी मंजिल से गिरी, पिता ने एंबुलेंस बुलाई तो एक का इंजन दूसरी के टायर खराब, तीसरी रास्ते में बंद, निजी गाड़ी से अस्पताल पहुंचे, जान बची 
गोलूवाला में गुरुवार को दिल दहलाने वाली घटना हुई। दो साल की एक बच्ची तीसरी मंजिल से नीचे फर्श पर आ गिरी। जिंदगी और मौत से जूझ रही मासूम को अस्पताल पहुंचाने के लिए पिता को डेढ़ घंटे संघर्ष करना पड़ा। आखिर वह किराए पर गाड़ी कर श्रीगंगानगर पहुंचे और यहां बच्ची की जान बच पाई। 

जानकारी के अनुसार बीआर चौधरी टीटी कॉलेज के निदेशक विकास बंसल कॉलेज की तीसरी मंजिल पर ही परिवार सहित रहते हैं। उनकी दो साल की बेटी पूर्वी घर की तीसरी मंजिल पर खेल रही थी। अचानक पैर फिसलने से मासूम नीचे आ गिरी। गिरते ही बच्ची के सिर से खून बहने लगा। घायल बच्ची को बचाने के लिए पिता ने एंबुलेंस बुलाई। एक के बाद दूसरी, फिर तीसरी एंबुलेंस से मदद मांगी गई, लेकिन सब खराब। वहां से गोलूवाला अस्पताल पहुंचे तो बच्ची को श्रीगंगानगर रेफर कर दिया गया। यहां प्राइवेट अस्पताल में बच्ची को लाया गया, जहां उसकी हालत स्थिर बनी हुई है। न्यूरोसर्जन डा.अजय मिश्रा ने बताया कि बच्ची अभी आईसीयू में है। 

ये घटना हम सबके लिए भी सबक है। छोटे बच्चों को कभी भी अकेला न छोड़ें। उन्हें अपने साथ रखें या किसी की निगरानी में छोड़ें। 

3 लापरवाही...90 मिनट संघर्ष किया, फिर भी नहीं मिली एंबुलेंस 

पहली...जब बच्ची के पिता ने गोलूवाला पीएसची में 108 को फोन किया तो वहां से जवाब मिला, एंबुलेंस खराब है। 
दूसरी...पिता निजी वाहन से पीएसची पहुंचा तो डाॅक्टरों ने पक्कासारणा से एंबुलेंस मांगी तो वहां भी टायर खराब की बात कहकर वापस लौटा दिया। 
तीसरी...कैंचियां से एंबुलेंस मंगाई तो वह भी आधे रास्ते में खराब हो गई। लिहाजा पिता अपनी गाड़ी से बेटी को श्रीगंगानगर लाया। 
पिता बोला- जोर से आवाज आई, खून से सनी थी बच्ची, मदद तक नहीं मिली 

सुबह 7 बजे पत्नी कपड़े धोकर सुखाने के लिए तीसरी मंजिल पर गई हुई थी। ना जाने कब बच्ची भी पीछे-पीछे चल गई। छत पर पक्षी देखकर बच्ची खेलने लग गई। भगवान जाने कि बच्ची का पैर कब फिसला और वह तीसरी मंजिल से नीचे पक्के फर्श पर आ गिरी। हम सब बच्ची की आवाज सुन सुन्न हो गए। आवाज सुन मैं बाहर आया तो देखा कि बच्ची खून से सनी हुई थी, समझ में नहीं आ रहा कि क्या हुआ और कैसे। चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ था। मैंने तुरंत एंबुलेंस 108 को फोन किया, जवाब मिला कि एंबुलेंस तो स्टार्ट ही नहीं हो रही। फिर मैं बिना देरी किए निजी वाहन से बच्ची को गोलूवाला सीएचसी ले गया। वहां पर डॉक्टरों ने उपचार के बाद श्रीगंगानगर रैफर किया। डॉक्टरों ने पक्कासारना 108 को फोन किया तो वहां से जवाब मिला तो हमारी एंबुलेंस के टायर खराब हैं। हम नहीं आ सकते। फिर डॉक्टरों से कैंचियां से एंबुलेंस मंगाई। थोड़ी देर बाद वहां से भी जवाब आया कि एंबुलेंस बीच रास्ते में खराब हो गई। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर मैंने बिना समय गंवाए प्राइवेट वाहन किराए पर किया और श्रीगंगानगर आ गया। वहां सरकारी अस्पताल और एंबुलेंस का हाल देख मैं बच्ची को प्राइवेट अस्पताल ले आया। यहां डॉक्टरों ने पहले से ही तैयारी कर रखी थी। हमारे अस्पताल पहुंचते ही उन्होंने उपचार शुरू कर दिया...और मेरी बेटी की जान बच पाई।  

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