आईजीएनपी को महज 5200 क्यूसेक पानी वो भी पीने के लिए, नरमा-कपास की बुवाई 30% तक गिरेगी
आईजीएनपी सिंचित क्षेत्र में नरमे की बिजाई पर इस साल बड़ा संकट मंडराने लगा है। बुधवार को चंडीगढ़ में हुई बीबीएमबी की बैठक में प्रदेश के हिस्से का पानी तय हुआ। इसके अनुसार अभी आईजीएनपी में सिर्फ सिंचाई पानी ही दिया जा सकेगा। गौरतलब है कि बीबीएमबी की बैठक में प्रदेश को 8050 क्यूसेक पानी देना तय किया गया है। इसमें से भाखड़ा व गंगनहर के लिए तय पानी कम करने पर आईजीएनपी में सिर्फ पीने के लिए ही पानी दिया जा सकेगा।
इससे नरमे की बिजाई बुरी तरह से प्रभावित होने की आशंका है। खासतौर पर श्रीगंगानगर जिले में बिजाई के रकबे पर अधिक असर पड़ेगा जबकि हनुमानगढ़ में भी बिजाई क्षेत्रफल 25-30 प्रतिशत तक कम हो सकता है। जानकारी के मुताबिक बांधों का जलस्तर कम होने के कारण प्रदेश को मांग के अनुरूप पानी नहीं मिल पा रहा है। अभी जलसंसाधन विभाग की ओर से 11000 क्यूसेक पानी की मांग की गई थी लेकिन 8050 क्यूसेक पानी ही मिल पाया है। अब 18 मई को फिर से बीबीएमबी की बैठक होगी। इसमें बांधों के जलस्तर और उपलब्ध पानी की समीक्षा के बाद विभिन्न प्रदेशों के हिस्से का पानी फिर से तय हो सकता है।
पानी घटा क्योंकि गर्मी कम होने से नहीं पिघली बर्फ, बांधों का स्तर गिरा
इस साल मौसम ने नहराें के पानी का पूरा गणित बिगाड़ दिया है। मई माह में भी गर्मी का सही ढंग से आगाज नहीं हुआ है। बीच-बीच में गर्मी होने के बाद मौसम में एकाएक बदलाव आता है और तापमान में गिरावट आ जाती है। पहाड़ों में तो बर्फबारी भी हो रही है। इस कारण ग्लेशियरों की बर्फ नहीं पिघलने से नदियों में पानी कम आ रहा है। इसका अधिक असर भाखड़ा डैम पर पड़ रहा है क्योंकि इसमें आने वाली सतलुज का पानी मुख्यत: ग्लेशियरों से ही आता है। उधर, बारिशें भी नहीं हुई हैं इसलिए व्यास के माध्यम से पौंग में आने वाले पानी की मात्रा भी कम है। सोमवार तक स्थिति यह थी कि भाखड़ा, पौंग व रणजीतसागर बांध में जलस्तर पिछले साल के मुकाबले दस फीट तक कम था और आवक भी पिछले साल के मुकाबले काफी कम थी। नहरों में पानी नहीं आने से नरमा की बिजाई काफी हद तक प्रभावित हो सकती है। हनुमानगढ़ जिले में करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नरमे की बिजाई होती है। कुछ क्षेत्र ट्यूबवैल से सिंचित है लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में किसान नहरी पानी पर भी निर्भर हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक जिले में नरमा का रकबा 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है। हालांकि विभागीय अधिकारी 20 प्रतिशत तक का अंतर आने की ही बात कह रहे हैं। अभी भाखड़ा सिंचित क्षेत्र में ट्यूबवैल से बिजाई हुई है लेकिन बाकी इलाकों में नरमे की बिजाई पर संकट है। 18 मई को बैठक के बाद पानी मिलता भी है तो किसानों को अधिक फायदा नहीं मिलेगा क्याेंकि नरमा की पछेती बिजाई भी 20-25 मई तक ही होती है।
यह रहेगी पानी की मात्रा
जलसंसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश को 8050 क्यूसेक पानी देना तय किया गया है। इसमें से 1200 क्यूसेक भाखड़ा व 1600 क्यूसेक पानी गंगनहर को दिया जाएगा। इसके अलावा 250 क्यूसेक पानी खारा सिस्टम में देने के बाद आईजीएनपी के लिए 5200 क्यूसेक पानी ही बचेगा। आईजीएनपी में तीन में से एक समूह पानी चलाने के लिए भी साढ़े सात हजार क्यूसेक से अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
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