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मुआवजे की मांग को लेकर बंद का ऐलान

ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों के मुआवजे की मांग को लेकर आपदा पीडि़त किसान संघर्ष समिति ने बुधवार को जिला कलेक्ट्रेट के सामने पड़ाव डाला। प्रशासन से वार्ता विफल होने पर अब चार अप्रैल को हनुमानगढ़ टाउन और पीलीबंगा में बंद का ऐलान किया गया है। संघर्ष समिति के प्रवक्ता सुरेंद्र बेनीवाल ने बताया कि इन दोनों जगहों पर चार अप्रैल को सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक बंद रखा जाएगा। शाम को प्रेस कांफ्रेंस की जाएगी और इसमें श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र के विधायकों को बुलाया जाएगा। प्रेस कांफ्रेंस में ही विधायकों से आंदोलन को समर्थन देने की मांग की जाएगी। विधायकों ने समर्थन नहीं किया तो लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर किसी भी जनप्रतिनिधि को गांव में नहीं घुसने दिया जाएगा। इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए माकपा महासचिव रामेश्वर वर्मा ने कहा कि फसल खराबे का मुआवजा किसानों का हक है और वे हक लेकर रहेंगे। सरकार नियमों में उलझाकर किसानों को थोड़ी-बहुत राशि देकर पीछा छुड़वाना चाहती है। मुआवजे की राशि कम से कम 20 हजार रुपए प्रति बीघा होनी चाहिए। सरपंच यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिद्धू ने कहा कि प्रशासन सर्वे करवाने में देरी कर रहा है। इससे किसानों का रोष बढ़ रहा है। प्रशासन को चाहिए कि राज्य सरकार को किसानों की स्थिति के बारे में अवगत करवाए ताकि जल्द से जल्द मुआवजे की घोषणा हो सके। इस मौके पर डीवाईएफआई प्रदेशाध्यक्ष रघुवीर वर्मा ने कहा कि ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों को पूरा मुआवजा मिलने तक संघर्ष जारी रहेगा। किसानों के बिजली बिल, आबियाना व ऋण माफी के संबंध में जल्द निर्णय होना चाहिए। सभा को संघर्ष समिति के संयोजक राजेंद्रसिंह रोमाणा, प्रभु पचार, रामेश्वर चांवरिया, जगरुप सिंह, सुमन चावला, सोहनलाल खालिया, बलवीर दूधवाल आदि ने भी संबोधित किया। 
बीमा की शिकायतें सुनने के लिए अलग से प्राधिकरण हो 
फसल बीमा के संबंध में बात करने पर रिटायर्ड एडीजे महावीर स्वामी ने कहा कि फसल बीमा को लेकर किसानों की शिकायतें काफी अधिक हैं। मौसम का निर्धारण करने के लिए लगाए गए ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन पर भी किसान सवाल उठाते रहते हैं। फसल बीमा संबंधी शिकायतों की सुनवाई के लिए सरकार को अलग से प्राधिकरण बनाना चाहिए ताकि किसानों की सुनवाई हो सके। 

फसल बीमा है या इनडायरेक्ट टैक्स 
पड़ाव के दौरान किसान नेताओं ने फसल बीमा के संबंध में चर्चा की। किसान नेताओं का कहना था कि 80 प्रतिशत किसान फसली ऋण लेते हैं और इन सभी किसानों से फसल बीमा के नाम पर प्रीमियम वसूला जाता है। जब मुआवजा देना होता है तो फसल बीमा करने वाली कंपनियां नियमों का हवाला देने लगती हैं। फसल बीमा के रूप में सरकार ने किसानों पर एक तरह का टैक्स लगा दिया है जिसका कोई फायदा किसान को नहीं मिल रहा है। 
कलेक्टर के आश्वासन के बाद भी नहीं माने किसान नेता 
पड़ाव के दौरान किसानों की सभा लंबे समय तक चली। वक्ताओं को सुनकर कई बार किसान आक्रोशित भी हुए। इस बीच तहसीलदार किसान प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए बुलाने सभास्थल पर पहुंच गए। इसके बाद किसान प्रतिनिधि वार्ता के लिए कलेक्टर के पास गए। कलेक्टर पीसी किशन ने किसान नेताओं को बताया कि उनका मांग पत्र एक अप्रैल को ही आपदा प्रबंधन व सहायता विभाग को भिजवा दिया गया है। अभी आचार संहिता लागू होने के कारण कई मुद्दों पर निर्णय लिया जाना मुश्किल है हालांकि किसानों को उचित मुआवजा दिलवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पटवारियों के सर्वे पर उठे सवालों के संबंध में कलेक्टर ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट सभी सरपंचों के पास रखवाई जाएगी। आपदा पीडि़त किसान अपना नाम सर्वे सूची में न होने पर प्रशासन को सूचित कर सकेंगे और उनकी समस्या का समाधान किया जाएगा। उधर, किसानों का कहना था कि फसल पर पांच हजार रुपए प्रति बीघा से अधिक का खर्च हो चुका है। ऐसे में सरकार की ओर से निर्धारित मुआवजे पर सहमति होना संभव नहीं है और कम से कम 20 हजार रुपए प्रति बीघा मुआवजा मिलना ही चाहिए। 

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