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धर्म से बड़ा कोई मंगल कार्य नहीं है। अहिंसा, संयम और तपस्या ही धर्म है। मनुष्य अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप को अपना लें तो धर्म उसके जीवन में स्वत:: ही आ जाता है। यह बात तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें अधिशास्ता महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण ने पुराने व्यापार मंडल कार्यालय के सामने हुई धर्मसभा में कही। महाश्रमण यहां दो दिवसीय प्रवास पर हैं। महाश्रमण स्वागत समिति की ओर से आयोजित धर्मसभा में उन्होंने कहाकि जहां अहिंसा और संयम नहीं है वहां धर्म और कल्याण की बात करना व्यर्थ है। मृत्यु शास्वत सत्य है, मनुष्य को अपने जीवन में संयम का अभ्यास करना चाहिए। क्योंकि ये तीनों ही मनुष्य को इस सांसारिक जीवन जीने की अद्भुत कला सिखाते हैं। उन्होंने कहा आचार्य श्री तुलसी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में प्रत्येक व्यक्ति को अहिंसा, तप और संयम को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प करना चाहिए। संयम से जीवन का विकास होता है और तपस्या से जीवन में निखार आता है। ये भी हुए शामिल: आचार्य के पीलीबंगा आगमन पर तेरापंथ सभा, जैन सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, अणुव्रत समिति, निरंकारी मंडल, शिक्षण समिति, व्यापार मंडल, माहेश्वरी सभा, अग्रवाल सभा, अरोड़वंश सभा सहित अन्य विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने पदयात्रा कर रहे आचार्य को जगह-जगह रोक कर उनका स्वागत किया। |
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