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आत्मा से जुड़कर स्वयं की पहचान करना ही प्रेक्षाध्यान : आचार्य महाश्रमण

पीलीबंगा
आचार्य महाश्रमण ने श्रद्धालुओं को अणुव्रती बनने का आह्वान करते हुए कहा कि अणुव्रती बनने के लिए जैन धर्म से जुडऩा कोई आवश्यक नहीं है। यह बात आचार्य महाश्रमण ने पीलीबंगा प्रवास के दूसरे दिन सोमवार को आचार्य तुलसी सर्किल के सामने स्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने त्याग और साधु के संबंध पर प्रकाश डालते हुए दोनों की महत्ता बताई। आचार्य ने मनुष्य को इस ब्रह्मांड में सबसे ज्ञानी बताते हुए कहा कि मनुष्य के पास इस संसार के समस्त प्राणी जगत के साथ-साथ देवों से भी अधिक ज्ञानशक्ति होती है। उन्होंने कहा कि देवों में चार गुण स्थान, पशुओं में पांच परंतु मनुष्यों में चौदह गुण स्थान होते हैं फिर भी वह इस सांसारिक मायाजाल में उलझकर इस महत्वपूर्ण अवसर को यूं ही गंवा देता है। आचार्य ने अपने व्याख्यान में गुरु, शिष्य व धर्म का संबंध समझाते हुए आचार्य तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा बताए गए प्रेक्षाध्यान के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मनुष्य द्वारा आत्मा से जुड़कर स्वयं की पहचान करना ही प्रेक्षाध्यान है। कार्यक्रम में आचार्य ने अपने 84 वर्ष के जीवनकाल में जीवन विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कुल चौदह हजार विद्यालयों का भ्रमण कर चुके वयोवृद्ध मुनि विजय कुमार को जीवन विज्ञान महासमप्रसारक की उपाधि देते हुए उनके क्रियाकलापों की सराहना की। कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय पदाधिकारी पुष्पा नाहटा ने अभिव्यक्ति से गुरुदेव की महिमा का बखान किया। महिला मंडल की पीलीबंगा शाखा की अध्यक्षा मंजू नौलखा ने साधु-साध्वियों व बाहर से आए श्रद्धालुओं का आभार जताया। कार्यक्रम में आचार्य ने पूर्व पार्षद डॉ. एफएम पंवार द्वारा कन्या भू्रण हत्या के संबंध में पूछे गए प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि डॉक्टर अगर इस कार्य को न करने का संकल्प लें तो यह समस्या स्वत: ही समाप्त हो जाएगी। कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर ने भी विचार रखे। 
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