कागजों में अटकी बड़ोपल पक्षी अभयारण्य की प्रक्रिया
पीलीबंगा तहसील के गांव बड़ोपल में पक्षी अभयारण्य (बर्ड सेंक्चुरी) की घोषणा ने भले ही जिले का गौरव बढ़ाया हो, लेकिन इसको मूर्त रूप देने की प्रक्रिया घोषणा के बाद से ही कागजों में ही चल रही है। प्रक्रिया के तहत तीन विभागों की एक जिला स्तरीय कमेटी का गठन करने के लिए बीकानेर स्थित मुख्य वन संरक्षक ने बीकानेर में एक कार्य आयोजना अधिकारी की भी नियुक्ति की है। कार्य आयोजना अधिकारी ने कई बार श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के उपवन संरक्षक और कलेक्टर को पत्र लिखकर कमेटी गठन के लिए कहा है लेकिन पिछले तीन माह से यह प्रक्रिया अटकी पड़ी है। दिलचस्प बात ये है कि इस दौरान कलेक्टर का तबादला होकर नए कलेक्टर ने पद संभाल लिया लेकिन प्रक्रिया अब भी कागजों में ही सिमटी है। ऐसे में जिला स्तर के अधिकारी इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
बड़ोपल पक्षी अभयारण्य क्षेत्र में हजारों बीघा भूमि वन विभाग, राजस्व विभाग व सिंचाई विभाग की घग्घर बहाव क्षेत्र के लिए आरक्षित है। यहां पर सेम का पानी होने और जुलाई-अगस्त में घग्घर का पानी आने से यहां विदेशी और स्वदेशी दुर्लभ प्रजातियों के पक्षी अपना डेरा बनाए रखते हैं। यहां कई तरह की कृत्रिम झीलों में भी घग्घर का पानी पहुंचता है, जिसमें खासकर साइबेरियन पक्षी पहुंचते हैं। इसके अलावा 20 जल भराव वाले क्षेत्र हैं, जहां विभिन्न प्रजातियों के पक्षी अठखेलियां करते नजर आते हैं। उक्त तीनों विभागों की एक संयुक्त कमेटी का गठन कर निर्धारित क्षेत्र तय किया जाना है, जहां अभयारण्य से संबंधित विकास होगा।
जिला स्तर पर कमेटी गठन को लेकर बीकानेर के कार्य आयोजना अधिकारी ने जिला कलेक्टर व उपवन संरक्षक को एक अप्रैल को पत्र लिखा, जिसमें बड़ोपल से जुड़े विभागों की कमेटी का गठन करने के लिए कहा गया। इसके बाद दूसरा पत्र 5 को तथा उसके बाद 16 अप्रैल को पत्र लिखा। यही नहीं पत्रों के साथ उन्होंने विभाग वाइज अधिकारियों के नाम तक दिए हैं, जो यदि कमेटी में शामिल किए जाएं तो बड़ोपल की प्रक्रिया तेजी से चल सकती है।
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