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"संतों की वाणी हमें जीवन का मूल्यांकन करना सिखाती है" : साध्वी डॉ. भव्यानंद

पीलीबंगा | इंसान से भगवान, नर से नारायण व आत्मा से परमात्मा बनने का मौका सिर्फ मानव के पास ही उपलब्ध है। ये विचार साध्वी डॉ. भव्यानंद ने रविवार सुबह के प्रवचनों में जैन भवन में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं से कहे। उन्होंने कहा कि अज्ञानी लोग स्वर्ग पाना चाहते है पर समझदार देव मानव की जिंदगी पाने की लालसा रखते है। मुक्ति पाने के लिए देवताओं को भी स्वर्ग लोग छोड़कर मनुष्य के शरीर में आना जरूरी हैं। क्योंकि मुक्ति मात्र मनुष्य के शरीर से ही संभव है। साध्वी श्री ने कहा कि संतों की वाणी हमें जीवन का सही मूल्यांकन करना सिखाती है। भारतीय संस्कृति 'इट ङ्क्षड्रक एंड बी मेरी' की संस्कृति नहीं है। यह काम तो जानवर भी अच्छी तरह कर लेते है। खाने-पीने व मौज मनाने से उपर भी कुछ है। उसे खोजने के लिए ही मानव का अनमोल चोला हमने पाया है। मनुष्य को जीवन जैसा मिला है वैसा स्वीकार कर लेना चाहिए परंतु उसे वैसा ही रहने नहीं देना चाहिए। इस जीवन में हमें आत्मा की खोज का काम करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कस्बे के जैन भवन में जैन साध्वियों द्वारा धर्म की अमृत वर्षा की जा रही है। जैन सभा अध्यक्ष मूलचंद बांठिया ने बताया कि साध्वी श्री पुनीतकला, साध्वी ज्ञान भारती, डॉ. भव्यानंद सहित अन्य साध्वीवृंद कच्छ-गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश, नेताल, काठमांडू आदि जगहों का पैदल भ्रमण करते हुए प्रथम बार पीलीबंगा पहुंची है। 

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