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कला भवन में 'लोक त्योहारों के प्रति कम होता रुझान' पर परिचर्चा

पीलीबंगा  अखिल भारतीय साहित्य परिषद, श्री जय लक्ष्मी साहित्य कला व नाटक मंच के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को मंच के कला भवन में आयोजित परिचर्चा 'लोक त्योहारों के प्रति कम होता रुझान' हुई। परिचर्चा की अध्यक्षता कवि बलविंद्र भनौत ने की। परिचर्चा में प्रवीण चौटाला ने कहा कि लोक त्योहार जीवन में रंग भरते है, लेकिन अब किसी के पास समय नहीं हैं। जिंदगी बदरंग हो गई है। साहित्यकार निशांत ने कहा कि बढ़ती हुई महंगाई व नई तकनीक के कारण लोग घरों से निकलना पसंद नहीं करते है। इस कारण त्योहारों का महत्व कम होता जा रहा है। भनौत ने कहा कि एकाकी परिवारों की तरह जीवन भी एकाकी होता जा रहा हैं और व्यक्ति मशीनी मनोरंजन का गुलाम होकर रह गया है। लेखक विजय बवेजा ने कहा कि वर्तमान समय की व्यस्तता के कारण जनता का लोक त्योहारों के प्रति ध्यान घटता जा रहा हैं। नवदीप भनौत ने दो पंक्तियां 'आंखों में जलन सीने में तूफान सा क्यों हैं, हर शख्स यहां परेशान सा क्यों हैं' पेश की। देवीलाल महिया ने कहा कि संघर्ष की अधिकता के कारण मानव जीवन अव्यवस्थित हो गया है। इस कारण त्योहारों के प्रति लोगों का महत्व कम होता जा रहा है। परिचर्चा में कर्मवीर तिवाड़ी व विशाल बंसल ने भी अपने-अपने विचार रखे। परिचर्चा का संचालन विजय बवेजा ने किया। 

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